Saturday, January 4, 2014

क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

मीन मेक में लुत्फ़ को ही इश्क़ कहते हैं
मेरे हर ऐब पे ग़ुरूर न हुआ उसे तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

कौन  कहता है बेख़ुदी रहती है इश्क़ में
ख़ुदग़र्ज़ी न हुई तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

शायर तो बेवक़ूफ़ हुए जितने हुए
इश्क़ जैसी बला में भी ज़ौक़ लिया
बेचैन औ बेसुकूं रहने में कैसा लुत्फ़
दिल तुड़वाया
साला शायरी को धंधा बना लिया
जो दिल तोड़े, उसका सर न फोड़ा तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

सवाल उठाना इलज़ाम लगाना
आशिक़ों ने साला पेशा बना लिया
यकीं करने के लिए जिग़र चाहिए
जो आशिक़ हाथ में लेकर चलता है
जो यकीं न हुआ उसे तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

जो रंज दिल में न रखे
वो आशिक़ नहीं
जो आसानी से माफ़ करे
वो आशिक़ नहीं
जो ज़ख्म न दे 
जो बुरा नहीं
 जो खुदगर्ज़ नहीं
जो दर्द न पाले
जो अकेला न रह सके
वो आशिक़ नहीं

हक़ दिया जो उसे ज़ख्म लगाने का
पर ज़ख्म लगाए तो हाथ तोड़ दो
जो मसर्रत के बजाय
ग़म का हक़ अदा हुआ तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

जो तबाह हो
वो आशिक़ नहीं
जो तबाह न कर सके
वो आशिक़ नहीं
ख़ुद को भुला के इश्क़ नहीं होता
उसे इश्क़ तुम्हारी ख़ुदी से था
इश्क़ से दुनिया जीत के दिखाओ
साली दुनिया छोड़ ही दी तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

जो ग़लत हो उसे सज़ा मिले
जो ग़लत भी सही लगे तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

अबे इश्क़ की रवानी से
खून गरम रहता है
साला जैसे High BP हो
काट दो तो ज़र्र्र से बहता है
ठन्डे बन कर कह दिया - "कोई बात नहीं" तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

जुनूँ के तूफाँ ने हिलाया उनको
"सत्य" कि आंधी ने नहीं 
भगत सिंह ने किया इश्क़
गांधी ने नहीं

लिख लिख के वीर रस में
कवियों ने हमें कमज़ोर बना दिया
जाँ देने को कमज़ोरी नहीं, जज़बा बता दिया
जान लो तो आशिक़ बनो
सारा गुरूर छोड़ के सर झुका दिया तो
क्या ख़ाक़ इश्क़ हुआ

क्या इश्क़ मिलाएगा ख़ाक़ में मुझे
मैं भी आशिक़ नहीं जो न कह सकूँ
के लो ख़ाक़ इश्क़ हुआ

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