Tuesday, February 8, 2011

अलमारी

मुझे तय करके अपनी अलमारी में रख ले।

चुपचाप पड़ा रहूँगा,
जहाँ रखेगा मुझे
अपनी सिलवटों की आदत भी डाल लूँगा,
न पहन रोज़ाना मुझे,
न मैला कर, न धुलवाना पड़े,
न उतारना पड़े मुझे
कुछ भी नया ले आ,
मुझे हर रंग से ढक दे
मुझे तय करके अपनी अलमारी में रख ले

सिरे उधड़ने लगे हैं अब,
किसी और का रंग भी चढ़ गया है मुझ पर,
पानी में डूब कर अब फूलता नहीं पहले सा,
कच्ची धुप में, सर्द हवा में, झूलता नहीं पहले सा
ज़्यादा जगह नहीं लूँगा,
दब कर छोटा हो जाऊँगा,
पड़ा रहूँगा, नज़र न आऊँगा,
मुझे तय करके अपनी अलमारी में रख ले

धीरे धीरे याद से मिट जाऊँगा,
मेरी आवाज़ भी नहीं पहुंचेगी तुझ तक,
मेरे सवाल भी दब के चुप हो जायेंगे,
मुझे देख कर किसी की बात याद न आएगी,
मेरे रंग से जुड़े जज़्बात भूल जाएगा
अलमारी की महक मैं सोख लूँगा,
उसे अपनी महक बना कर पी लूँगा,
अब तुझ से दूर रहने की आदत हो चली है,
सांस लूँगा, जी लूँगा,
मुझे तय करके अपनी अलमारी में रख ले

हर कोई मुझे तुझसे दूर करने की बात करता है
इस दुनिया से यूँ भी थक गया हूँ मैं,
तेरी अलमारी,
तेरा सामान,
तेरी महक,
सब कुछ तुझ से भर लूँगा,
हाथ बाँध कर, गर्दन झुका कर,
मैं फिर चैन से मर लूँगा,
न धुप, न हवा की अब ज़रुरत है
बस मुझे मेरी जगह दे दे, इस अलमारी में,
तय
करके अपनी अलमारी में रख ले

मैं नहीं जंचता साथ तेरे,
मेरी बाजुओं से लम्बे हैं हाथ तेरे,
पर मैं तो जीवन बाँध चुका हूँ,
सारी सीमा फांद चुका हूँ,
न मुश्किल हो मुझसे,
न तकलीफ़ दूं,
मुझसे जुडा कोई फैसला न लेना पड़े,
मैं रहूँ वहां, जहाँ तुझे लगे मैं नहीं रहा,
मैं रहूँ वहां, तेरे जगह न लूं जहाँ,
मैं रहूँ वहां, जहाँ मुझे रख कर तू भूल जाए,
मेरी गलती पर न कभी तेरी नज़र जाए,
अँधेरे में जब मैं डर जागूँ,
मेरे साथ तू न डर जाए,
घर में रहूँ, तेरी सोच में न रहूँ,
तेरे साथ रहूँ, तेरे साथ न रहूँ,
तेरे सामान में रहूँ,
तेरे ध्यान में न रहूँ,
मैं रहूँ वहां, जहाँ न रहूँ,
इसी लिए,
मुझे तय करके अपनी अलमारी में रख ले

सब कुछ लाद दे मुझ पर,
सारे रंगों में दबा दे मुझे
ख्याल न रख, चिंता न कर,
बस मुझे तय करके अपनी अलमारी में रख ले

3 comments:

imli said...

I love it...!! :(

Dasbehn said...

I think this is your best till date. Followed by kuch din and then shareer.
Its been a long time since you wrote some prose no?
I have two requests.. one poem with the line "Tinke ki tarah main beh nikli" and another which you can call "Khamosh sa afsana)

ritu said...

TOOOO GOOD AND EQUALLY DEEP !!!!!!!!!!!!!!
VERY GOOD WORK !!!!!!!!!!!!