Wednesday, April 28, 2010

हीर

रांझा रांझा करदी नि मैं आपे रांझा होई,
रांझा रांझा सद्दो नि, मैनू हीर न आंखो कोई ।

ना ओदा मैं लेंदी हाँ,
मेरा सजदा हो जावे,
ना मेरा जो लेवां ते,
मन मैला हो जावे,
हीर ते कमली हो बैठी, मैनू हीर न आंखो कोई ।

Monday, April 5, 2010

वक़्त

कई दफ़ा पहले ये हाथ मिलाता था,
इस बार जो गुज़रा, वक़्त अजनबी सा गुज़रा है ।

साथ बैठ दो बात न बोली,
न सुनी, न सुनाई,
बस खुदगर्ज़, मतलबी सा गुज़रा है ।

जाएगा कहाँ, वास्ता तो पड़ेगा ही,
इस राह में, रास्ता तो पड़ेगा ही,
तरस खा कर पहचान लूँगा,
जैसे यहीं था, बस अभी सा गुज़रा है ।