Sunday, November 9, 2008

एक दिन

इस एक दिन को कितने साल लगे ।

गिरने के ज़्यादा, संभलने के कम,
चलने के ज़्यादा, रुकने के कम,
कितने आंसू, कितने मुस्कुराहटें,
कितनी ही कच्ची नींद की आहटें,
कितने लगे अधूरे रिश्ते,
अपने एहसास की भरनी पड़ी कितनी किश्तें,
कितना सिखाया, कितना सीखा,
कितने झूठों को सींचा,
कितनी बार ढूँढा नया तरीका,
कितने सारे शक़, कितने मलाल लगे,
इस एक दिन को कितने साल लगे ।

नाक रही सीधी, सीधी चली हूँ मैं,
कईयों से बुरी, कई ज़्यादा से भली हूँ मैं,
कई बार हार के बैठ अकेले रोई,
कई बार अकेले जली हूँ मैं,
मन मुठी में भर कर,
अपने हाथों पली हूँ मैं,
आज सीधी चली अपनी हर चाल लगे,
इस एक दिन को कितने साल लगे ।

वो छत पर निडर हो कर दौड़ना,
एक हाथ से एक साल पकड़ना,
दूसरे से एक साल छोड़ना,
सर्दी की रातों में सिकुड़ के सोना,
हर साल के साथ ये भी बदल गया,
लोग बदले, जगह बदली,
समय के साथ हर रिश्ता बदल गया,
अब न अंधेरे से डरती हूँ न दुःख से,
न तेज़ हवा का खौफ है,
न डरती हूँ उसके रुख से,
रिश्ता अजीब सा है वैसे सुख से,
कभी वो मुझसे रूठ जाता है,
कभी मैं उस से,
पर हर बार अस्तित्व को संभाला है,
हर बार नए रिश्तों को पाला है,
इन सालों से कहीं, ख़ुद को ढूँढ निकाला है,
हर बीते पल में मेरा एक हिस्सा था,
हर हिस्से का अपना अलग किस्सा था,
हर हिस्सा मुझे बहुत प्यारा है,
हर किस्से को उम्मीदों से संवारा है,

अब कई नई उम्मीदें पल रही हैं,
कई भावनाएं आज आंखों में चल रही हैं,
आज लगता सब कुछ नया, अनोखा है,
आज सचमुच आईने में ख़ुद को देखा है ।

ये आज ही हुआ, आज नया दिन है,
लगता है आज फिर जन्मी हूँ मैं,
मिट गए आंसू सारे, मिट गई हर घिन्न है,
लगता है आज फिर जन्मी हूँ मैं,
लगे जैसे हर बोतल में जिन् है,
लगता है आज फिर जन्मी हूँ मैं,
जीवन से भरे सारे पल-छिन हैं,
लगता है आज फिर जन्मी हूँ मैं,
लगता है आज मेरा पहला दिन है,
आज फिर जन्मी हूँ मैं ।

सब कुछ बदलने को सिर्फ़ एक दिन लगा,
पर इस एक दिन को कितने साल लगे ।