Sunday, July 27, 2008

पलकें

मैं पलकें नही झपकता,
डर लगता है ।

उस एक पल में,
कितनी जिंदगी है,
उस एक पल में,
कितनी है मौत,
उजाले से अँधेरा,
अंधेरे से फिर उजाला हो न हो,
मैं उस अंधविश्वासियों में से हूँ
जिसे अँधेरा मौत का घर लगता है,

मैं पलकें नही झपकता,
डर लगता है ।

आंखों में पानी रहता है,
कभी रुकता, कभी बहता है,
कैद करता रहता हूँ छवियों को,
बेच दूँगा किसी दिन कवियों को,
पुतलियाँ जब जवाब दे जायेंगी,
पलकें जब भारी हो जायेंगी,
रंग छूटने लगेंगे पहले,
नहले लगने लगेंगे दहले,
त्रुटियां ओझल हो जाएँगी,
जब पलकें बोझल सो जायेंगी,
सिखाया है इनको, पर प्रवृति से हैं पोस्ती,
पर हो न पायेगी अंधेरे से दोस्ती,
उस दिन आत्मबल बढ़ा पलकों पर लपकूंगा,
न रहेंगी, न झपकूंगा ।

फिर देखूँगा,
हर पल क्या मंज़र लगता है,
मैं पलकें नही झपकता,
डर लगता है ।

सूरज

बस अब बहुत हुआ,
आज सूरज कुरेदना है।

छुपता है बादलों के पीछे,
आज तू देख नीचे,
नीचा दिखाना है तुझे,
बुझा न पाया तो,
कुछ मंद बनाना है तुझे,
बहुत उगली आग तुने,
अब तुझ पे अंगार उंडेलना है,

बस अब बहुत हुआ,
आज सूरज कुरेदना है ।

तुझे छीलूंगा,
तो रोशनी नाखूनों में भर जायेगी,
तपन, खाल में घर कर जायेगी,
फिर भी निहथा आऊंगा,
तेरी जिद्द को अपनी जिद्द से मिलवाऊँगा,
तेरी ही आग में तुझे जलाऊँगा,
समेट ले जिन किरणों को समेटना है,

बस अब बहुत हुआ,
आज सूरज कुरेदना है ।

नया दिन, नई रोशनी,
इसी बात का न तुझे गुरूर है,
नही बदलती जिंदगी,
ये तेरा ही क़सूर है,
हँसता है, मज़ाक उडाता है,
रोज़ वही कहानी लिए आ जाता है ।

पर अब और नही,
न नई रोशनी, न नया दिन,
न नई उम्मीद, न पल कठिन,

कल ये किस्सा ख़त्म,
अब बस तेरे लिए थोडी संवेदना है ।

बस अब बहुत हुआ,
आज सूरज कुरेदना है ।

कल सुबह फिर रात होगी ।
न होगा कल, न कल की बात होगी ।

Thursday, July 24, 2008

आसमान


आज आसमान सफ़ेद है,
थोडी मस्ती हो जाए!


हरे - हरे पत्तों की पेस्ट बना कर,

थोड़ा सा गुलाब का रंग निकाल कर,

छिड़केंगे आसमान पर,


या फिर मिट्टी में पानी मिलाकर,

पोथेंगे और भूरा कर देंगे सारा आकाश,

फिर थोडी रौशनी के टुकड़े उठा कर,

छोटे-छोटे तारे बना कर,

टांगेंगे आसमान पर।

अच्छा है उस से पहले, मिट्टी थोडी सस्ती हो जाए,


आज आसमान सफ़ेद है, थोडी मस्ती हो जाए!


रंग लेकर जामुन से, समुन्दर से नीला पानी ले कर,

लेंगे नारंगी - संतरों से, hari hari क्यारियों से लेंगे हरियाली,

शिमला के सेबों से ले लेंगे लाली,

बनाएँगे नया एक इन्द्रधनुष, चाहे कितना भी दांते माली,


पर पहले सारी बस्ती सो जाए,

आज आसमान सफ़ेद है, थोडी मस्ती हो जाए!


खेतों की पकती धान से, चुरा लेंगे सुनेहरा रंग,

उस में थोड़ा गुड़ मिला कर, करेंगे थोड़ा गहरा रंग,

खाने की प्लेट से, एक गोला बनेगा,

सीधी-सीधी लइनों से, किरणों को रूप मिलेगा,

लो बन गया है सूरज, अब थोडी सी धूप हो जाए,


आज आसमान सफ़ेद है, थोडी मस्ती हो जाए!


Mummy की चमकीली साड़ी है,

कोना लेंगे उस में से,

सफ़ेद-सफ़ेद पानी मिला कर उस में,

चमकीला कर देंगे और थोड़ा,

बंटी की छोटी प्लेट से फिर बनेगा एक छोटा गोला,

अच्छा है इस में किरणें नही है,

इसी लिए चाँद बनाना ही सही है,

पर सफ़ेद आसमान में सफ़ेद चाँद कहीं न खो जाए!


कोई बात नही, आज आसमान सफ़ेद है, थोडी मस्ती हो जाए!

सच

आंखों से आंसू टपकाते,
बार-बार पलकें झपकाते,
खड़े पैरों पर डगमगाते... आते,
मुझसे बोली, "आप नहीं समझोगे... आपके पास माँ का दिल नहीं है न ।"


सच भी है - बच्चे ने "माँ" कहा था पहले,
"बाबा" कहने में कुछ दिन लगे थे,
माँ की उस जीत पर,
पिता ने कई आंसू ठगे थे,
सुबह दो नन्हे हाथ,
सिर्फ माँ की ही गर्दन से लगे थे,
मामूली सी खांसी पर जब,
रात भर माँ-बाबा दोनों बराबर जगे थे।


एक हाथ में दामन का कोना,
दूसरे में मेरी ऊँगली रही थी,
चलना सीखा, छूठी ऊँगली,
हर शाम तो उसके बाद भी, माँ के दामन में ही ढली थी।

जलती पूरियों का दोष ख़ुद पे लेता,
क्यूँ न हो? था तो - "अपनी माँ का लाडला बेटा" ।

हर सवाल, हर राज़, हर बात,
माँ के ही कानों में पहले पड़ती,
शायद मेरे दुःख में, मेरे आंसू शामिल नहीं हैं न,
क्या करुँ ? मेरे पास माँ का दिल नहीं है न ।

सालों बाद आज जब घर लौटा है,
माँ के गले लग, बच्चे की तरह रोता है,
पता नहीं क्यूँ माँ को देख, आँखें भावी हो जाती हैं,
पिता के आगे, सारी शिकायतें आंसूओं पर हावी हो जाती हैं ।

पर आज गले लगा तो, गला भर आया,
सालों का ग़म, आंखों में उतर आया,
पुछा मैंने, "क्यूँ तेरी माँ, तेरे पीछे, तेरे आगे, इतना रोती है?"
सोचा... फिर बोला... " आप नहीं समझोगे बाबा, आपके पास माँ का दिल नहीं है न ।"

बीते साल, एकाएक, मेरे सामने उतर आए
आज इस पिता के आंसू भर आए।
मुझसे बोला, "बाबा आप को क्या हुआ ?"

मैं मुस्कुरा के बोला, "तू समझेगा पर कई सालों बाद...

"तू समझेगा...

पिता का दिल है न ।

Friday, July 18, 2008

आज चाँद पूरा है

आज चाँद पूरा है,
अब्र फिर अदावत पर उतर आयेंगे।
ढकेंगे, छुपायेंगे, दफ्न कर देंगे नूर,
आदत नही है ये, है गुरूर,
हर रेशे को चुन-चुन, क़त्ल किया जायेगा
आज फिर हिज्र को तमगा-ऐ-गुनाह-ऐ-वस्ल दिया जायेगा।

घेरा जायेगा फिर माहताब को,
आसमान भर के साये, फ़क़त एक हरारत पर उतर आयेंगे ।
आज चाँद पूरा है
अब्र फिर अदावत पर उतर आयेंगे

हर सितारे के क़स्बे पर हक़ जमाने की कोशिश को,
आज फिर नाकाम किया जायेगा,
सदियों से चली आई इस अदावत को,
आज तमाम किया जायेगा
नज़रों में लहू आज आया है,
आज के फैसले रिवायत पर उतर आयेंगे
आज चाँद पूरा है
अब्र फिर अदावत पर उतर आयेंगे
क़स्बे, रियासतें, होंगी लहुलुहान,
सदियाँ करेंगी बखान,
आज टुकड़े होंगे,
सदियों दुखड़े होंगे,
इनायत हुई अगर तो,
कबीलों के काफ़िले विलायत पर उतर आयेंगे

आज चाँद पूरा है
अब्र फिर अदावत पर उतर आयेंगे
कल चाँद कटेगा,
कल चाँद कटेगा ।

Thursday, July 10, 2008

मैं मर रहा हूँ

शायद ख़ुद को खुदा समझा है, इसी लिए ये जुर्रत कर रहा हूँ,
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ।

मेरा सच, करोड़ों का झूठ है, उनका झूठ मेरा सच,
उन्हें मुझसे खेद है, मुझे उनसे हर्ज,
खुदाई में बंदगी से डर रहा हूँ।
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ।

न किसी के अश्कों की मैं वजह बना,
फिर भी हर अश्क की वजह हूँ,
कहने को इक तरफ़,
फिर भी हर जगह हूँ,
बंदगी में खुदाई से डर रहा हूँ।
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ


ज़्यादा खुशी और ज़्यादा ग़म में फर्क नहीं,
दोनों में ही भीगती हैं आँखें,
दोबारा चलने से पहले,
एक पल रुकती हैं सांसें,
उस एक पल की मौत में जिंदगी भर रहा हूँ,
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ


मेरी नज़रों के प्यार को तरसता हो कोई,
ख़ुद से नफरत हुई जाती है ऐसे प्यार से,
जिंदगी ने खूब देखा मुझे इस ओर से,
अब जिंदगी को मैं देखूँगा उस पार से
बिखरे लम्हों से ख़ुद को समेट, संवर रहा हूँ।
साँसों से मन भर गया, मैं मर रहा हूँ